इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC)
🔴नेहरू द्वारा बनाये गये इस मधुमख्खी के छत्ते में साठ साल में पहली बार मोदी ने लाठी मारी है !!
🔺वास्तव में ‘सत्ता’ का असली अर्थ समझना हो तो- दिल्ली में स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर(IIC) घूम आइये.. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) वो जगह है जहाँ सत्ता सोने की चमकती थालियों में परोसी जाती है -
🔺इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) एक शांत और भव्य बंगले में स्थित है जिसमे हरे भरे लॉन, उच्च स्तरीय खाने और पीने की चीजों के साथ शांति से घूमते हुए वेटर हैं -
ऊपर वाले होंठो को बगैर पूरा खोले ही - मक्खन की तरह अंग्रेजी बोलने वाले लोग हैं,
यहां..लिपिस्टिक वाले होठों के साथ सौम्यता से बालों को सुलझाती हुई महिलायें हैं -
जिनका बिना शोर किये हाथ हिलाकर या गले मिलकर शानदार स्वागत करते हैं !
🔺भारत सरकार द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर(IIC) की स्थापना एक स्वायत्त संस्था के रूप में -स्वछन्द विचारधारा और संस्कृति के उत्थान के लिए की गयी थी -वहाँ आपको वो सब बुद्धिजीवी दिखेंगे - जिनके बारे में आप अंग्रेजी साहित्य और पत्रिकाओं के माध्यम से जानते है -
🔺यू.आर.अनंतमूर्ति वहां पिछले पाँच सालो से एक स्थायी स्तम्भ की तरह जमे हुए थे -
2014 में मरने से पहले गिरीश कर्नाड,- प्रीतिश नंदी, मकरंद परांजपे, शोभा डे जैसे जाने कितने लेखक ,पत्रकार और विचारक IIC के कोने कोने में दिख जायेगे -नयनतारा सहगल यहाँ प्रतिदिन “ड्रिंक करने” के लिए आया करतीं हैं, साथ ही राजदीप सरदेसाई और अनामिका हकसार भी वहां रोजाना आने वालों में से ही हैं,
बंगाली कुर्ता और कोल्हापुरी चप्पलें पहने हुए, आँखों पर छोटे छोटे शीशे वाले चश्मे लगाये बुद्धिजीवियों के बीच सफ़ेद बालों और खादी साड़ी में लिपटी कपिला वात्स्यायन और पुपुल जयकर भी नज़र आ ही जायेगी!
🔺इस भीड़ का तीन चौथाई भाग महज कौवों का झुण्ड है -विभिन्न पॉवर सेंटर्स के पैरों तले रहकर यह अपना जीवन निर्वाह करते हैं... इनमें से ज़्यादातर लोग सिर्फ सत्ता के दलाल हैं !
लेकिन ये वह लोग हैं हैं जो हमारे देश की संस्कृति का निर्धारण करते हैं - एक निश्चित शब्दजाल का प्रयोग करते हुए यह -किसी भी विषय पर रंगीन अंग्रेजी, में घंटे भर तो बोलते हैं - परन्तु इकसाठवें मिनट में ही इनका रंग फीका पड़ना शुरू हो जाता है -
🔺वास्तव में ये लोग किसी चीज़ के बारे में कुछ नहीं जानते -सेवा संस्थानों और सांस्कृतिक संस्थानों के नाम इनके पास चार पांच ट्रस्ट होते हैं और ये उसी के सम्मेलनों में भाग लेने के लिए इधर उधर ही हवाई यात्रायें करते रहते हैं - एक बार कोई भी सरकारी सुविधा या आवास मिलने के बाद इन्हें वहां से कभी नहीं हटाया जा सकता-
अकेले दिल्ली में करीब पांच हज़ार बंगलो पर इनके अवैध कब्ज़े हैं !
🔺तो सरकार खुद इन्हें हटाती क्यों नहीं - ? सवाल उठा ना मन में..
पहली बात तो यह कि पूर्व की सरकारें तो इस बारे में सोचती ही नहीं थीं-क्यों कि नेहरू के ज़माने से ही यह लोग इसे चिपके हुए हैं - और ऐसा बिना सरकारी संरक्षण सम्भव हो नहीं सकता - समझे आप..
🔺दूसरा कि यह लोग एक दुसरे का भंयकर वाला सपोर्ट भी करते हैं -इसके अलावा एक और बात है -यह महज़ एक परजीवी ही नहीं हैं - अपितु स्वयं को प्रगतिशील वामपंथी कहकर अपनी शक्ति का स्वयं निर्धारण भी करते हैं - व खुद ही मिलकर ढिंढोरा पीटकर स्थापित होते हैं - इस कला के पुराने खिलाड़ी हैं..
दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के सेमीनार में उपस्थित होने के कारण ये दुनिया भर में जाने भी जाते हैं -ये बहुत ही अच्छे तरीके से एक दुसरे के साथ बंधे हुए हैं -दुनिया भर के पत्रकार- भारत में कुछ भी होने पर इनकी राय मांगते हैं - क्या पता मानते भी हों..यह सरकार के सिर पर बैठे हुए जोकर की तरह हैं -और कोई भी इनका कुछ नहीं कर सकता और यही भारत की कला , संस्कृति और सोच का निर्धारण करते हैं !
🔺अफवाहों को उठाकर “न्यूज” में बदल देने वाले इन बुद्धिजीवियों के अन्दर शाम होते ही अल्कोहल सर चढ़कर बोलती है -मोदी जी ने इस चक्रव्यूह को तोड़ने की हिमाकत की है
🚫बरखा दत्त की, टाटा के साथ की गयी "दलाली" नीरा राडिया टेप के लीक होने पर प्रकाश में आई थी..लेकिन इतने भीषण खुलासे के बाद भी बरखा को एक दिन के लिये भी पद से नहीँ हटाया जा सका था..
यह हैं इनकी शक्ति का स्तर..मोदी जी ने इस चक्रव्यूह को तोड़ने की हिमाकत की है -चेतावनियाँ सरकार बनने के छह महीने से ही इन्हें दी जाती रही -फ़िर सांस्क्रतिक मंत्रालय ने इन्हें नोटिस भेजा - “असहिष्णुता” की आग फैलाने का असली आन्तरिक कारण यही था -
🚫 शायद..उदाहरण के लिए पेंटर जतिन दास, जो की बॉलीवुड एक्टर नंदिता दास के पिता हैं , इन्होने पिछले कई सालों से दिल्ली के जाने माने एरिये में एक सरकारी बंगले पर कब्ज़ा कर रखा है -सरकार ने उन्हें बंगले को खाली करने का नोटिस दिया था-इसके बाद से ही नंदिता दास लगातार अंग्रजी चैनलों पर असहिष्णुता के ऊपर बयानबाज़ी कर रही है - और अंग्रेजी अखबारों में कॉलम लिख रही हैं !
🔺कई शहरों व अखबारों में इनके शागिर्द हैं वह इनकी राग में गाते हैं - वैसे ही शब्द वैसी ही नज़र जैसी कौवौ या चील की होती है -केवल इन्हें इस सरकार की कमियां दिखती है और जो अच्छाइयां हैं, उनको कैसे बुरा बताकर आंकडो से भरमाया जा सकता है - इस कला के यह उस्ताद हैं -हां हमारा शहर भी अछूता नहीं है - इनके पिस्सू यहां भी फल फूल रहे हैं -
🔺समझ में आया कुछ -मोदी जी जैसे एक मजबूत आदमी ने जब से इनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है - तब से रंग व चौला बदल बदल कर बिलबिला रहें हैं -
यही कारण है कि इनकी लिखी स्क्रिप्ट पर लिखा भाषण पढने वाली व वाले राजनीतिक छुछून्दर इनके दुख से दुखी हैं ।
🔺यह तथाकथित बुद्धिजीवी बेहद शक्तिशाली तत्व हैं -मीडिया के द्वारा ये भारत को नष्ट कर सकते हैं..यह पूरी दुनिया की नज़र में ऐसा दिखा सकते हैं कि जैसे- भारत में खून की नदियाँ बह रही हों -ये विश्व के बिजनेसमैन लॉबी को भारत में निवेश करने से रोक सकते हैं -टूरिस्म इंडस्ट्री को बर्बाद कर सकते हैं।
🔺सच्चाई ये है कि इनके जैसी भारत में कोई दूसरी शक्ति ही नहीं हैं -भारत के लिए इनको सहन करना मजबूरी हैं !!
पर उम्मीद है जल्द ही इन लोगों को धोया जाएगा।
(साभार एक मित्र कि वाल से)
ब्रिगेडियर_नरेन्द्र_ढंड
Brig Narinder Dhand,
Founder & Convener
Veteran's Web Portals.
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