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” हिंदी और देवनागरी "

" हिंदी और देवनागरी की वैज्ञानिकता"

" हिंदी-अंग्रेज़ी टक्कर?"

डॉ. मधुसूदन

http://www.pravakta.com/dr-madhusudan-hindi-english-competition-part-a

() एक रविवारीय भोज के बाद, वार्तालाप में, भोजनोपरांत डकारते डकारते, मेरे एक पश्चिम-प्रशंसक, {भारत-निंदक, उन्हें स्वीकार ना होगा} वरिष्ठ मित्र नें प्रश्न उठाया, कि" क्या, तुम्हारी हिंदी अंग्रेज़ी से टक्कर ले सकती है? सपने में भी नहीं।" यह सज्जन, हिंदी के प्रति, हीन भाव रखनेवालों में से है। वे, उन के ज्ञान की अपेक्षा, आयु के कारण ही, आदर पाते रहते है।

पर आंखे मूंद कर, "साहेब वाक्यं प्रमाणं", वाला उन का, यह पैंतरा और भारत के धर्म-भाषा-संस्कृति के प्रति हीन भावना-ग्रस्त-मानस मुझे रुचता नहीं। पर, ऐसी दुविधा में क्या करता? दुविधा इस लिए, कि यदि, उनकी आयु का आदर करूं, तो असत्य की, स्वीकृति समझी जाती है; और अपना अलग मत व्यक्त करूं, तो एक वरिष्ठ मित्र का अपमान माना जाता है। पर कुछ लोग स्वभाव से, आरोप को ही प्रमाण मान कर चलते हैं। यह सज्जन ¨ भी बहुत पढे होते हुए भी, उसी वर्ग में आते थे।

इस लिए, उस समय, उनका तर्क-हीन निर्णय और सर्वज्ञानी ठप्पामार पैंतरा देख, मुझे कुछ निराशा-सी हुयी। ऐसा नहीं, कि मेरे पास कुछ उत्तर नहीं था; पर इस लिए भी , कि हिंदी तो मेरे इस मित्र की भी भाषा थी, एक दृष्टि से मुझ से भी कुछ अधिक ही।पर उस समय उनका आक्रामक रूप, चुनौती भरा पैंतरा और "सपने में भी नहीं" यह ब्रह्म वाक्य और आयु देख, उन्हें उत्तर देना मैं ने उचित नहीं माना। पर इस प्रसंग ने मेरी जिज्ञासा जगाई, अतः इस विषयपर कुछ पठन-पाठन-चिंतन-मनन . करता रहा।

() तो, क्या, हिंदी अंग्रेज़ीसे टक्कर ले सकती है?

निश्चित ले सकती है। और हिंदी भारतके लिए कई गुना लाभदायी ही नहीं, शीघ्र-उन्नतिकारक भी है। भारत की अपनी भाषा है। मैं इस विषयका हरेक बिंदु न्यूनतम शब्दों में क्रमवार आपके सामने रखूंगा। केवल तर्क ही दूंगा, भावना नहीं जगाउंगा। तर्क की भाषा सभी को स्वीकार करनी पडती है, पर केवल भावनाएं, आप को वयक्तिक जीवन में जो चाहो, करने की छूट देती है। और मैं चाहता हूं, कि सभी भारतीय हिंदी को अपनाएं; इसी लिए तर्क, केवल तर्क ही दूंगा।

()

आप निर्णय लें, मैं नहीं लूंगा। न्यूनतम समय लेकर मैं क्रमवार बिंदू आप के समक्ष रखता हूँ। इन बिंदुओं में भाउकता नहीं लाऊंगा। राष्ट्र भक्ति, भारतमाता, संस्कृति, इत्यादि शब्दों से परे, केवल तर्क के आधार पर प्रतिपादन करूंगा। तर्क ही, सर्व स्वीकृति के लिए उचित भी और आवश्यक भी है। इस लिए, केवल तर्क-तर्क-और तर्क ही दूंगा।

" हिंदी और देवनागरी की वैज्ञानिकता"

  1. हर बिंदू पर गुणांक, आप अपने अनुमानके अनुसार, लगाने के लिए मुक्त हैं।

हमारी देवनागरी समस्त संसार की लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक है,सर्वोत्तम

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