जोधपुर के महाराजा ऊमेदसिंह जी अौर उड्डयन विभाग :-
भारतीय वायु सेना के प्रथम हिंदुस्तानी एयर वाईस मार्शल थे महाराजा ऊमेद सिंह जी जोधपुर । महाराजा को मारवाड़ मे हवाई अड्डो का निर्माता कहते हैं जिन्होंने १९२४ से १९४५ तक २४ हवाई पट्टियों का निर्माण करवाया जो ब्रिटिश काल में किसी रियासत में इतने हवाई अड्डे नहीं बने थे ।
महाराजा ने १९२४ - २५ में जोधपुर ओर उत्तरलाई ( बाड़मेर ) का हवाई अड्डा बनवाया जो आज भी भारतीय वायु सेना के प्रमुख हवाई अड्डे माने जाते है । जोधपुर के हवाई अड्डे पर महाराजा ने लगभग एक लाख छतीस हज़ार आठ सौ तीस रुपये ख़र्च किए तथा उत्तरलाई पर उस समय नौ हज़ार छः सौ दस रुपए ख़र्च हुए ।
१९३३ तक हवाई अड्डों ko दो भागो मे बाँटा गया था एक पब्लिक लेंडिंग ग्राउण्ड ओर दुसरा प्राइवेट लेंडिंग ग्राउण्ड । पब्लिक लेंडिंग ग्राउंड्स में प्रमुख थे - जोधपुर , गडरा रोड़ , मेड़ता रोड़ , उत्तरलाई , फालन , सोजत , तिलवाड़ा , रोहट ओर नागौर ये सभी हवाई मार्ग से जुड़े थे । प्राइवेट मे जालोर, पाली, सादड़ी, साँचोर , कुचामन , धोलेराव , सांभर ओर बालसमंद प्रमुख थे ।
जोधपुर के हवाई अड्डे पर १९२९-३० में ९९ हवाई जहाज उतरे , १९३०-३१ में २४९ , १९३१-३२ में ३४० , १९३२-३३ में ४१८ ओर १९३३-३४ में ४५१ हवाई जहाज उतरे । ११ मार्च १९३८ तक मारवाड़ में २३ हवाई अड्डों का निर्माण पुरा कर लिया गया जिससे सभी अचंभित थे आख़िरकार ब्रिटिश सरकार को महाराजा को यह कहना पड़ा की सुरक्षा के हिसाब से अधिक हवाई पट्टियौ का निर्माण करना उचित नहीं है ।
जोधपुर हवाई अड्डा १९३६ तक अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा बन चुका था , इस वर्ष ७६१ हवाई जहाज़ों का आवागमन हुवा ।
महाराजा ऊमेद सिंह जी को श्रेय जाता है की उन्होंने ही पहल करते हुवे "जोधपुर फ्लाइगं क्लब "की १९३१ में स्थापना की । सप्ताह में छः दिन क्लब से हवाईजहाज उड़ान भरते थे । एरियल पिकनिक भी होती थी १० रुपए में जोधपुर शहर का हवाई भ्रमण भी कराया जाता था । इससे मारवाड़ के दर्शनीय स्थानो पर पर्यटन भी बढ़ने लगा था । १९४७ तक जोधपुर रियासत ने हवाई क्षेत्र पर एक करोड़ चार लाख दस हज़ार दो सो बत्तीस रुपए व्यय किए थे ।
महाराजा ऊमेद सिंह जी को २३ जून १९३१ में " एयर कमोड़ोर " तथा १९४५-४६ में "एयर वाइस मार्शल " का पद ब्रिटिश सरकर ने प्रदान किया था ।
जोधपुर महाराजा साहेब के समय राज्य के दो "टाइगर मोथ " व एक " लियोपार्ड मोथ " हवाई जहाज थे । महाराजा के स्वयं के उपयोग के लिये तीन निजी हवाई जहाज थे " मोनो स्पाट एस. टी-४ ( वीटी - ए.जी.बी.) , क्रोंपर स्वीट ( वी टी - ए. के . वाई ) अौर परसीवलगल ( वीटी - ए जी की ) । १९३६ में अजमेर के व्यवसायी राय बहादुर सेठ भगचंद सोनी ने महाराजा को राज्य के उपयोग हेतु एक हवाई जहाज " लियोपार्ड मोथ - वीटी - ए. एच . एच . भेंट किया था ।
महाराजा ऊमेदसिंह जी १९३९ मे एक बड़ा भारी हवाई जहाज अमेरिका से ख़रीदा था जो दो लाख दस हज़ार रुपए का था तथा उस समय सबसे महँगा था ।
जोधपुर के अंतिम महाराजा हनवंत सिंह जी भी कुशल विमान चालक थे । इनके सुयोग्य पुत्र वर्तमान मारवाड़ के उतराधिकारी महाराजा गज सिंह जी साहेब ने भारत चीन युद्ध के समय एक हवाई जहाज भारत सरकार की वायु सेना को भेंट किया था जिसने युद्ध में बड़ा कमाल दिखाया था ।
अभी हाल ही में जोधपुर राज्य का एक विमान जो महाराजा श्री गज सिंह जी साहेब का निजी विमान है वह मेहरानगढ़ द्वारा अमेरिका में आयोजित एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित भी किया गया था ।
जोधपुर राजपरिवार ओर रियासत का भारतीय उड्डयन विभाग के विकास मे बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान हैं । आज वायु सेना दिवस पर उनके योगदान का संक्षिप्त परिचय आपके सामने रखा जो अवश्य सुधी पाठकों को रुचिकर होगा ।
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ब्रिगेडियर_नरेन्द्र_ढंड
Brig Narinder Dhand,
Founder & Convener
Veteran's Web Portals.
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